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Showing posts from October, 2018
दूसरी कविता इसका कोई शीर्षक मैंने नहीं सोचा है। यदि किसी को समझ आए तो स्वागत है। उसने कहा बचपना        मत करो क्यों मत करो       मन को मारो बस पर बचपना मत करो      रात -दिन बीतते है तो बीते      जिन्दगी चुकती है तो चूक जाए वक्त जाता है तो       जाए पर बचपना मत करो।  जिंदगी के ख़त्म होने पर , समय के चले जाने, और खुशियो के मर जाने पर एतराज़ नहीं है पर बचपना दिखाने पर है। यंहा सब बचपना मारने में लगे है , जो सुकून है ,ख़ुशी है , प्यार है, उत्साह है , उमंग है,जीने की। कामना है ,कुछ पाने की। अहसास है ,तृप्त होने का। अनुभव है अनुराग का ,प्यार का। जीवन है जीने का। बचपना उसे मत रोको , उसे जिंदा रहने दो उसे जिंदा रहने दो।

meri kavita

ये मेरा पहला पोस्ट है और मैं इसकी शुरआत अपनी एक कविता से करना चाहती हूँ। कविता का शीर्षक है माँ रोशनी से चमकते  हुए सूरज से            मैंने पुछा  क्या दोगे मुझे कुछ रोशनी           उसने अहंकार से कहा जाओ पहले             रोशनी लायक तो बन जाओ। मैंने पुछा कौन होता है रोशनी लायक वह बादशाह जिसे रोशनी दान में मिलती है। या वह शिक्षक जो रोशनी निर्मित करता है, या वह माँ जिसमे स्वयं रोशनी होती है, मैंने सोचा मुझे नहीं बनाना प्रशिक्षिक    मैं  तो वह माँ की रोशनी महसूस करना चाहूंगी जिसमे जीवन है         आशा है ,प्रकाश है ,        प्राण है ,रूप है,        जो स्वरुप देती है प्रकाश को        जिसकी रोशनी से अदभुत हो जाता है        संसार का यह प्रभामंडल।